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मी है । इस रीति से पांचरूप होने पर भी मित्रापुत्रत्व हेतु दूषित है-अतः अतिव्याप्ति है।
पांच रूप होने पर भी यहाँ व्याप्ति का अभाव है । इसलिये मित्रापुत्रत्व-हेतु दोष युक्त है । जहाँ दो अर्थो में व्याप्ति होती है, वहाँ कार्य कारण भाव अथवा साध्य के साथ पूर्वचर भाव अथवा उत्तरचर भाव आदि होता है। श्याम वर्ण और मित्रा के पुत्रों में कार्यकारणभाव नहीं है । अपने पुत्रों को श्यामता में मित्रा वस्तुतः कारण नहीं । यदि मित्रा श्याम वर्ण का कारण हो तो चतुर्थ पुत्र में गौरवर्ण नहीं होना चाहिये । गर्भ धारण के काल में माता जो आहार करती है वह पुत्र के वर्ण में कारण है। कोई आहार श्याम वर्ण को और कोई आहार गौर वर्ण को उत्पन्न करता है। आहार और वर्ण में कार्य-कारणभाव है। मित्रा और वर्ण में कार्य कारण भाव नहीं है। इसलिये व्याप्ति नहीं है। व्याप्ति न होने से मित्रापुत्रत्व हेतु दोषयुक्त है । एक शाखा प्रभवस्वरूप हेतु के दोष युक्त होने का कारण अबाधित विषयत्व का अभाव नहीं है । वहाँ भी व्याप्ति का अभाव दोष का कारण है । एक ही शाखा में कुछ फल पके हैं
और कुछ फल कच्चे हैं। इसलिये पाक के साथ एक शाखा प्रभवत्वहेतु की व्याप्ति नहीं है।
देवदत्त की मूर्खता को सिद्ध करने के लिये तत्पुत्रत्व हेतु दोष युक्त है। उसमें आप असत्प्रतिपक्षत्व के अभाव को कारण कहते हैं परन्तु वह कारण नहीं है । वहां मी ध्याप्ति का अभाव दोष का मूल है जो एक पुत्र शास्त्र ज्ञान बाला है उसमें तत्पुत्रत्व है परन्तु मूर्खता नहीं है । अतः मूर्खस्वरूप साध्य और तत्पुत्रत्वरूप हेतु में व्याप्ति नहीं है। इस. लिये निश्चित अन्यथा अनुपपत्ति ही हेतु का एक लक्षण है।