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- विवेचना:-अश्विनी आदि नक्षत्रों का उदय जब होता है. तब उनके उत्तर काल में उत्तरवर्ती नक्षत्रों का उदय अवश्य होता है। इस व्याप्ति के कारण कृत्तिका और रोहिणी इन दो नक्षत्रों के एक काल में उपयकी अनुमिति नहीं होती। जिस काल में कृत्तिका नक्षत्र का उदय है, उस काल में रोहिणी नक्षत्र का उदय नहीं। कृत्तिका नक्षत्र का जो उदयकाल है उसके उत्तर काल में रोहिणी नक्षत्र का उदयकाल है। कृत्तिका का उदय हेतु है, वह रोहिणी के उदय काल रूप पक्ष में नहीं है इस रीति से पक्ष सत्व का अभाव होने पर भी अनुमिति होती है। यहां साध्य और साधन भिन्न काल में हैं. इसलिये पक्षधर्मता का अभाव है। कालकी अपेक्षा से पक्षधर्मता रूप लक्षण का यह व्यभिचार है। देश की अपेक्षा से भी पक्षधर्मता का ध्यभिचार देखा जाता है । इसका उदाहरण इस प्रकार है
जब जलमें चन्द्रमा का प्रतिबिब देखकर आकाश में चन्द्र को अनुमिति करते हैं तब आकाश चन्द्र की सत्ता साध्य होती है और जल-चन्द्र हेतु होता है। आकाश चन्द्र का देश आकाश है वहां जल चन्द्र नहीं है। इस रीति से पक्ष धर्मता के अभाव में प्राकाश चन्द्र की अनुमिति होती है।
इस रीति से भूमि में प्रकाश से, ऊपर आकाश में सूर्य को अनुमित होती है । आकाश देश पक्ष है उसमें भूमिका मालोक नहीं है तो भी अनुमिति होती है। अन्य अनुमान भी इस प्रकार के हैं-जहां हेतु पक्षमें विद्यमान नहीं होता। अनेक लोग नीचे के भाग में नदी के बढे हुए प्रवाह को देखकर नदी के ऊपर के प्रदेश में वष्टि की अनुमिति करते हैं। वृष्टिका देश नदी के ऊपर के भाग में है. वह पक्ष है। जल का