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के कारण 'धर्मभूषण' ने तर्क को जो प्रमाण कहा है वह तब संगत होता है जब वहाँ मिथ्याज्ञान निवृत्त होने योग्य हो, ज्ञानाभाव की निवृत्ति का पर्यवसान तो स्वव्यवसाय में होता है और वह स्वव्यवसाय अर्थ ज्ञान है इस प्रकार के व्यवहार का कारण है । इस प्रकार की अज्ञान निवृत्ति सामान्य फल है-यह समझना चाहिये।
विवेचना:-दिगम्बर विद्वान् धर्मभूषण-तकं को अमान का निवर्तक होने के कारण प्रमाण कहता है । उसके मत के अनुसार अज्ञान की निवृत्ति तर्क का फल है। यहाँ पर अज्ञम शब्द का अर्थ यदि मिथ्याज्ञान हो तो अज्ञान को निवत्ति तर्कका फल हो सकती है। संदेह रूप मिथ्याज्ञान तक से दूर होता है इसलिये उमको निवृत्ति तक का फल हो सकती है। अपने विषय में जो शंका है उसको तर्क दूर करता है। इसलिये प्रमाण है और सदेह को निवृत्ति उसका फल है । परन्तु अज्ञान शब्द का अर्थ यदि संदेहरूप मिथ्याज्ञान न हो, किन्तु ज्ञान का अभाव हो तो उसकी निवृत्ति विशेष रूप से तर्क का फल नहीं हो सकती । ज्ञानाभाव को निवृत्ति ज्ञानारूप है। वह सामान्यरूप से प्रत्येक ज्ञान का फल है। जब प्रत्यक्ष ज्ञान का अभाव है तब प्रत्यक्ष ज्ञ न के हो चुकने पर ज्ञान भाव को निवत्ति प्रत्यक्ष ज्ञानरूप होती है । अनुमान ज्ञान जब होता है तब अनुमान ज्ञान के अभावकी निवृत्ति होती है । वह निवृत्ति अनुमान ज्ञानरूप होती है। इसी रीति से स्मृति और प्रत्यभिज्ञान आदि ज्ञानों में ज्ञानाभाव को निवृत्ति होती है। कोई भी ज्ञान इस प्रकार का ज्ञान नहीं है,