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संकेत को जानता है और विषयों से परिचित है उसको जब शब्द का श्रवण होता है, तभी विशेष का ज्ञान होता है इस अपेक्षा से नन्दीसूत्र अर्थावग्रह में शब्द की प्रतोति को कहता है । इस मत में अर्थावग्रह पुरुष भेद से दो प्रकार का है तत्काल उत्पन्न बालक का अव्यक्त ज्ञानरूप है और विषयों से परिचित मनुष्य का विशेष ज्ञानरूप है ।
मूलम्-तन्नः एवं हि व्यक्ततरस्य व्यक्तशब्दज्ञानमतिक्रम्यापि सुबहुविशेषग्रहप्रसङ्गात् न चेष्टापत्तिः, 'न पुनर्जानाति क एष शब्दः' इति सूत्रावयवस्याविशेषेणोक्तत्वात् , प्रकृष्टमतेरपि शब्दं धर्मिणमगहीत्वोत्तरोत्तरसुबहुधर्मग्रहणानुपपत्तेश्च ।
अर्थ-यह मत युक्त नहीं । इस रीति से तो विशेष ज्ञानी को व्यक्त शब्द के ज्ञान से भी आगे बढकर अत्यन्त अधिक विशेषों का ज्ञान होना चाहिये। यदि आप इस आपत्ति को स्वीकार करो तो भी युक्त नहीं । "वह जानता नहीं यह शब्द कौनसा है" सूत्र का यह भाग सामान्य रूप से कहा गया है । उत्कृष्ट बुद्धिवाला भी धर्मी शब्द को जाने बिना उत्तर काल के अनेक धर्मों को नहीं जान सकता ।
विवेचना-यदि विशेष ज्ञानी को प्रथम क्षण में "यह शब्द है" इस रीति से निश्चयात्मक ज्ञान हो, तो उसकी