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रूप साव्यवहारिक प्रत्यक्ष ज्ञान का निरूपण मेदों के साथ पूर्ण हुआ।
[पारार्थिक प्रत्यक्ष के तीन भेद और उनमें से प्रथम अवधिज्ञान का निरूपण-]
मलम्---स्वोत्पत्तावात्मव्यापारमात्रापेक्ष पारमार्थिकम् । तत् त्रिविधम्-अवधिमनःपर्ययकेवलभेदात् ।
अर्थ-जो ज्ञान अपनी उत्पत्ति में केवल आत्मा के व्यापार की अपेक्षा करता है वह पारमार्थिक प्रत्यक्ष है । उसके तीन भेद हैं (१) अवधिज्ञान (२) मनःपर्यवज्ञान और (३) केवलज्ञान ।
मलम्--सकलरूपिद्रव्यविषयकजातीयम् आत्ममात्राक्षं ज्ञानमवधिज्ञानम् ।
अर्थ--समस्त रूपी द्रव्यों के विषय में केवल आत्मा की अपेक्षा से जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह अवधिज्ञान है।
मूलम्--तच्च षोढा अनुगामि-वर्धमानप्रतिपातीतरभेदात् ।
अर्थ--वह छे प्रकार का है- (१) अनुगामी (२) अननुगामी (३) वर्धमान (४) हीयमान (५) प्रतिपाति (६) अप्रतिपाति ।