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व्याप्य है । वृक्षत्व और आम्रत्व में कार्य कारण भाव नहीं है किन्तु व्याप्य व्यापक भाव है । पाषाण आदि में वृक्षत्व नहीं है और वहाँ आम्रत्व भी नहीं है । मोहनीय और भूख में व्याप्य व्यापक भाव नहीं है। जिन स्वभावों में व्याप्यव्यापक भाव होता है, वे स्वभाव एक अधिकरण में रहते हैं, और उनमें भेदाभेद होता है। वृक्ष एक अधिकरण है, उसमें वृक्षत्व और आम्रत्व रहते हैं । आम्रत्व वृक्षत्व से सर्वथा भिन्न नहीं, और सर्वथा प्रभिन्न भी नहीं किन्तु भिन्नाभिन्न है। प्रत्यक्ष से एक अर्थ अ. स्र और वृक्ष रूप में दिखाई देता है । अत्र के समान कोई एक अर्थ नहीं है जो मोहनीय और भूख के रूप में प्रतीत हो । मोह का स्वभाव विरोधी भावना से निवृत्त होता है । क्रोध मोहनीय का भेद है वह क्षमा की भावना से दूर होता है । यदि भूख मोह के स्वभाव से युक्त हो, तो विरोधी भावना से उसकी निवृत्ति होनी चाहिए।
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किन्तु भूखरूप पीड़ा की निवृत्ति विरोधी भावना से नहीं होती किन्तु भाजन से होता है। शास्त्र भी भूख की निवृत्ति के लिए विरोधी भावना का उपदेश नहीं करता किन्तु पिंडेषणा का उपदेश करता है । जब साधु माहाराज गोचरी के लिए जाते हैं, तब अनेक क्लेश होते हैं, ओर ध्यान स्वाध्याय आदि में विघ्न होता है। यदि भूख विरोधी भावना से दूर हो सकती हो तो शास्त्र गोचरी के लिए भिन्न-भिन्न घरों में जाने का उपदेश न करते । शीत और उष्ण को पीडा के समान, भूख भी पीडा है, वह मोहरूप नहीं है। यदि भूख मोहरूप हो तो शीत उष्ण की पीड़ा भी मोह रूप होनी चाहिए।
बाह्य और आभ्यंतर कारणों से केवली कवलाहार करता है । भोजन का अभाव बाह्य कारण है, इसमें कोई