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अनुभव हुआ था, उसका निर्देश 'वह' पद से होता है, वही विशेष्य है। उसके साथ इन्द्रिय का संबंध नहीं हो सकता।
अतीत देश और काल के साथ संबंध करने में इन्द्रिय की शक्ति नहीं है । विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध आप के मत में ज्ञान के प्रत्यक्ष भाव का मुख्य कारण है, वह यहाँ नहीं है इसलिए यह ज्ञान प्रत्यक्ष से भिन्न है यह वस्तु सिद्ध होती है । यह ज्ञान जिस प्रकार प्रत्यक्ष मे भिन्न है. इस प्रकार 'यह वही फल है। इस प्रकार का ज्ञान भी प्रत्यक्ष से भिन्न है।
'इसके समान वह था' इस ज्ञान में सादृश्य की प्रतीति है। सादृश्य बिना भी इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान होता है, जिसमें विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध नहीं हो सकता । जिस प्रकार वही यह फल है" इस आकार का प्रत्यभिज्ञान होता है इस प्रकार “यही फल वह था" इस आकारवाला भी प्रत्यभिज्ञान होता है । वतमान देशकाल के साथ जिस फल का सबंध है उस फल का संबंध पूर्व देश काल के साथ था इस प्रकार को प्रतीति होती है । यहाँ जो विशेष्य है उसका पूर्व देश और काल के साथ संबंध है, अतः पूर्व देश और काल से विशिष्ट विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध नहीं हो सकता। जिस प्रकार यह ज्ञान प्रत्यक्ष नहीं है किन्तु प्रत्यक्ष से भिन्न है, इसी प्रकार 'वही यह फल है' यह प्रत्यभिज्ञान भी प्रत्यक्ष नहीं है।
जब प्रत्यभिज्ञान होता है तब स्मरण और अनुभव क्रम से संयुक्त होते हैं । इस क्रम का अनुभव सिद्ध करता हैप्रत्यभिज्ञान स्मरण और अनुभव के संबंध से उत्पन्न अतिरिक्त ज्ञान है और परोक्षरूप है।