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अर्थः-समाधान में कहते हैं-'तर्कयामि" में तर्क करता हूँ-इस अनुभव से तर्क सिद्ध होता है । इस तर्क के द्वारा समस्त साध्य और साधन व्यक्तियों के साथ व्याप्ति का ज्ञान होता है। आप जिस सामान्यरूप संबंध की कल्पना करते हो उसमें प्रमाण नहीं है। यदि सामान्य का ज्ञान हो भी जाय तो तर्क के बिना समस्त व्यक्तियों का ज्ञान नहीं हो सकता ।
विवेचना:-वर्तमानकाल और पुरोवर्ती वेश में जितनो व्यक्तियाँ है उतनी व्यक्तियों में साध्य के साथ सामनाधिकरण्यरूप व्याप्ति का ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा हो सकता है। इस विषय में इन्द्रियों को शक्ति अनुभव से सिद्ध है। परन्तु सामान्यरूप अलौकिक संनिकर्ष के द्वारा इन्द्रियों में जिस शक्ति को आप कहते हैं वह युक्त नहीं। व्यवहित देशकाल की व्यक्तियाँ इन्द्रियों का विषय ही नहीं हैं । सामान्यरूप संनिकर्ष-उनमें इन्द्रियों को प्रवृत्त नहीं कर
सकता।
इसके अतिरिक्त सामान्य स्वरूप संनिकर्ष को सत्ता में प्रमाण भी नहीं है। तर्क के द्वारा समस्त साध्य साधन व्यक्तियों का ज्ञान हो सकता है। समस्त साध्य साधन व्यक्तियों के साथ तर्क का स्वाभाविक संबंध है। इन्द्रियों में यह शक्ति नहीं है। समस्त व्यक्तियों के बिना सामान्य नहीं रह सकता यह ज्ञान जब तक न हो तब तक सामान्य समस्त व्यक्तियों को उपस्थित नहीं कर सकता । समस्त व्यक्तियों के बिना सामान्य उत्पन्न नहीं होता। यह ज्ञान तक के बिना