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प्रयोज्य पुरुष की प्रवृत्ति का कारण ज्ञान है और उस ज्ञान के कारण प्रयोजक पुरुष के शब्द हैं । इन शब्दों के विषय में उसको 'यह वर्ण है' ये पद हैं, ये वाक्य हैं, इस प्रकार सकलनरूप प्रत्यभिज्ञान होता है । गौ के शब्द के 'ग औं' इतने वर्ण अवयव हैं । पूर्व पूर्व अवयव वर्गों के सुनने से संस्कार उत्पन्न होता है । जब अन्तिम अवयव वर्ण को सुनता है तब पूर्व वर्गों का स्मरण होता है। इस रीति से वह जानता है-यह वर्ण 'ग' है और यह वर्ण 'औ' है । इस रीति से वर्गों के विषय में उसको प्रत्यभिज्ञान होता है । इसके उत्तरकाल में उसी मनुष्य को पूर्व पूर्व वर्गों के सुननेसे संस्कार उत्पन्न होते हैं । इसलिये जब अन्तिम वर्ण को सुनता है, तब क्रम से युक्त पूर्व वर्णों का स्मरण होता है । इसके अनन्तर इस पद का यह अर्थ है-इस प्रकार के संकेत का ज्ञान होता है-इसके द्वारा उसको यह नाम पद है और यह क्रिया पद है इस प्रकार का ज्ञान होता है । प्रकृत उदाहरण में 'गौ को' इतना नाम-पद है और 'लाओ' इतना क्रिया-पद है । इस रीति से नाम और क्रियापदों का ज्ञान हो जाने पर उसी मनुष्य को पूर्व पूर्व पदों के सुननेसे संस्कार उत्पन्न होते हैं और अन्तिम पद के सुनने पर क्रम से युक्त पूर्वपद और वाक्य के विषय में जो संकेत है उसका स्मरण होता है इसके अनन्तर वह वाक्य है इस प्रकार का प्रत्यभि. ज्ञान प्रकट होता है । इस रीति के द्वारा वर्ण पद और वाक्य का ज्ञान प्रत्यभिज्ञानरूप होता है । प्रयोजक पुरुष के शब्द को सुनकर होनेवाली प्रयोज्य पुरुष को प्रवृत्ति को देखकर वाच्य-वाचक भाव के ज्ञान से रहित पुरुष अनुमान करता है। प्रयोज्य पुरुष को प्रवृत्ति का कारण यह