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वह पारमार्थिक भाव रूा नहीं है । सत्य भावरूप अर्थ से उत्पन्न होनेके कारण प्रत्यक्ष प्रमाण है. परन्तु अनुमिति भावरूप अर्थ से उत्पन्न नहीं है किन्तु सामान्य से उत्पन्न है । इम सामान्य का संबंध पारमार्थिक भावरूप अर्थ के साथ है । इस कारण अनुमान कल्पित अर्थ का प्रकाशक होने पर भी सत्य अर्थ की प्राप्ति कराता है और इस कारण व्यवहार की दृष्टि से प्रमाण भी है यह सब जो आपने अनुमान के प्रामाण्य के लिये कहा है- वह तर्क ज्ञान के विषय में भी कहा जा सकता है । जिस सामान्य को लेकर तर्क व्यापक रूप में साध्य साधनभाव आदिको प्रकाशित करता है उस सामान्य का संबंध सत्य अर्थों के साथ है । वास्तव में सामान्य व्यक्तिओं से भिन्न और अभिन्न है।
मूलम:-गस्तु अग्निधूमव्यतिरिक्त देशे प्रथमं धूमस्यानुपलम्भ एकः, तदनन्तरमग्नेरूपलम्भस्तनो धूमस्येभ्यु ग् लम्भद्वयम् पश्चादग्नेरनुपलम्माऽनन्तरं धूपस्याप्यनुपलम्भ इति द्वावनुपलम्भाविति प्रत्यक्षानुपलम्भपञ्चकाद्व्याप्तिग्रहः - इत्येतेषां सिद्धान्तः,
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तदुक्तम्
धूमधर्वह्निविज्ञानं, धूमज्ञानमत्रोस्तयोः । प्रत्यक्षानुपलम्भाभ्यामिति पञ्चभिरन्वयः ॥'
इति;
अर्थ:- इस विषय में बौद्धों का जो यह सिद्धान्त हैअग्नि और धूम से रहित स्थान में पहली बार धूमका अनुपलम्भ होता है । यह एक अनुपलम्भ है ।