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मूलम् :-स तु मिथ्या; उपलभ्भानुपलम्भ. स्वभावस्य द्विविधस्यापि प्रत्यक्षस्य सन्निहितमात्रविषयतयाऽविचारकतया च देशादिव्य. वहितसमस्तपदार्थगोचरवायोगात् । ___अथ :-चौद्धों का यह सिद्धांत मिथ्या है। उपलम्भ
और अनुपलम्भ स्वभाववाला दो प्रकार का प्रत्यक्ष समीपवर्ती विषय में ही होता है और विचारक न होनेके कारण देश आदिसे व्यवहित समस्त पदार्थों में नहीं हो सकता।
विवेचना :-व्याप्तिज्ञान का विषय केवल समीपवर्ती धूम आदि नहीं है, किन्तु अतीत और अनागत काल में और व्यवहित देश में जो धूम और वहिन है वे भी विषय हैं। इन विषयों के साथ प्रत्यक्ष का संबंध नहीं हो सकता । जो भो धूम है वह किसी देश में हो अथवा किसी काल में हो वह अग्नि से ही उत्पन्न हो सकता है। किसी अन्य अर्थ से उसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती. इतने विचारों के करने की शक्ति प्रत्यक्ष में नहीं है। इसलिये प्रत्यक्ष व्यापक रूप में व्याप्ति का प्रतिपादन नहीं कर सकता । उपलम्भ और अनुपलम्भ के द्वारा अग्नि कारण और धूम कार्य प्रतीत होता है। यदि भिन्न देशकाल में वहिन के बिना धूम उत्पन्न हो जाय.तो वह वहिन का कार्य नहीं हो सकता और यदि अग्नि का कार्य न हो तो अग्नि के अभाव में उसकी निवृत्ति नहीं होनी चाहिये। जब वहिन हो उसी काल में हो उसकी प्रतीति नहीं होनी चाहिये । इस रीतिसे सर्वथा तुच्छ रूप होने के कारण आकाश पुष्प और वन्ध्या पुत्र आदिके