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होता है कारण - समस्त वाच्य और वाचक तर्क के विषय हैं । इस विषय में हेतु इस प्रकार है - जो मनुष्य वाच्यवाचक भाव को नहीं जानता वह प्रयोजक वृद्ध से कहे हुए वाक्य को सुनकर प्रवृत्ति करनेवाले प्रयोज्य वृद्ध की चेष्टा को देखता है और उसके द्वारा निश्चय करता है । प्रयोज्य वृद्ध की प्रवृत्ति का कारण ज्ञान है ओर उस ज्ञान का कारण शब्द है । इसके अनन्तर उसको अन्तिम अवयव के श्रवण और पूर्व अवयव के स्मरण से वर्ण-पद और वाक्य के विषय में संकलन रूप प्रत्यभिज्ञान होता है । उसके अनन्तर आवाप और उद्वाप के द्वारा समस्त व्यक्तियों के साथ वाच्यवाचक भाव की प्रतीति होती है ।
विवेचना:- चक्षु, रसना, नासिका, और त्वचा ये चार इन्द्रय रूप, रस, गंध और स्पर्श इन चार विषयों में ज्ञान उत्पन्न करतो हैं । श्रोत्र के द्वारा शब्द का ज्ञान होता है, इस जातिका शब्द वाचक है और इस जाति का अर्थ वाच्य है. इस प्रकार का वाच्य वाचक भाव किसी इन्द्रिय का विषय नहीं है उसकी प्रतीति के लिये तर्क चाहिये । प्रयोजक वृद्ध पुरुष जब कहता है 'गौ को लाओ' तब प्रयोज्य पुरुष गौ और लाओ इन दो पदों के वाच्य वाचक भाव को जानता है, इसलिये गाय लाने के लिये प्रवृत्त होता है। जो पुरुष इन दो पदों के वाच्य वाचक भाव को नहीं जानता वह प्रयोज्य पुरुष की गाय लाने के लिये प्रवृत्ति को देखकर समझता है,
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