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संनिकर्ष लोकिक है-इस संनिकर्ष के द्वारा वर्तमानकाल के और पुरोवर्ती देश के वृक्ष को अथवा वृक्ष के रूप आदिको इन्द्रिय जानती हैं । सामान्य स्वरूप अलौकिक संनिकर्ष के द्वारा समस्त काल और देश के साध्य और साधन व्यक्तियों के साथ इन्द्रियों का संबंध होता है। उसके द्वारा इन्द्रिय समस्त साध्य-साधन व्यक्तियों की व्याप्ति को जान सकती हैं। इस सामान्य स्वरूप अलौकिक संनिकर्ष का यथार्थ रूप इस प्रकार है-इन्द्रिय के साथ जिस अर्थ का संबंध होता है उस अर्थ के विषय में जब ज्ञान उत्पन्न होता है तब उस ज्ञान का विषय विशेष्य होता है, इस प्रकारका ज्ञान इन्द्रिय संबंध विशेष्यक कहा जाता है। इस ज्ञान में जो सामान्य प्रकार भूत है उस सामान्य का ज्ञान अलौकिक संनिकर्ष है । चक्ष के साथ धूम का संबंध होने पर यह धूम है इस प्रकार का ज्ञान उत्पन्न होता है। इस जान में धूमत्व प्रकार है। धूमत्व का यह ज्ञान चक्षु का अलौकिक संनिकर्ष है। धमत्व के ज्ञानरूप अलौकिक सनिकर्ष से चक्षु कालान्तर और देशान्तर के धूमों को जान सकती है। इसी प्रकार समस्त वह्नियों का भी प्रत्यक्ष होता है। उत्तरकाल में समस्त धूम और वह्नियों को व्याप्ति का ज्ञान प्रत्यक्ष से हो सकता है।
मूलम्:-न; 'तर्कयामि' इत्यनुभवसिद्धेन तर्केणैव सकलसाध्यसाधनव्यक्त्युपसंहारेण व्याप्तिग्रहोपपत्तो सामान्यलक्षणप्रत्यासत्तिकरूपने प्रमाणाभावात् , ऊहं विना ज्ञातेन सामा. न्येनापि सकलव्यक्त्यनुपस्थितेश्च ।