________________
१७४
जिसके मन में संस्कार उत्पन्न हुए हैं, इस प्रकार का प्रमाता जब गवय को देखता है तब गाय का स्मरण होता है । स्मरण के पीछे "वह गाय इस गवय के समान है" इस रूप में ज्ञान होता है। सादृश्य का प्रकाशक होनेसे इस ज्ञान का उपमानभाव उचित है । जो वस्तु की एकता को प्रकाशित करता है वह प्रत्यभिजान कहा जाता है। सादृश्यज्ञान एकता का प्रकाशक नहीं, अतः वह प्रत्यभिज्ञान नहीं। .
मूलम्:-तमुक्तम्तस्माद्यत् स्मर्यते तत् स्यात् सादृश्येन विशेषितम् । प्रमेयमुपमानस्य सादृश्यं वा तदन्वितम् ॥१॥ प्रत्यक्षणावबुडेऽपि, सादृश्ये गवि च स्मृते। विशिष्टस्यान्यतोऽसिडे-कपमानप्रमाणता ।२।।
[श्लोक वा उप० ३७-३८] इति अर्थ:- कहा भी है
सादृश्य से विशिष्ट जिस अर्थ का स्मरण होता है वह अर्थ उपमान का प्रमेय है अथवा उस पदार्थ से युक्त सादृश्य उपमान का विषय है । प्रत्यक्ष से सादृश्य का ज्ञान होता है और गाय का स्मरण होता है परन्तु विशिष्ट अर्थ की सिद्धि अन्य प्रमाण से नहीं होती, अतः उपमान प्रमाण है।
विवेचना:-"इस गवय के समान गो है" इस रीति से जब ज्ञान होता है तब गवय द्वारा निरूपित सादृश्य से विशिष्ट