________________
अतः उपमान नहीं हो सकता । इस कारण विलक्षणता का ज्ञान यदि अतिरिक्त प्रमाण हो, तो आप प्रमाणों की जो संख्या नियत करते हैं उसका विरोध होगा।
मुलम्-एतेन-'गोसदृशो गवयः' इत्यति. देशवाक्यार्थज्ञानकरणकं सादृश्यविशिष्टपिण्ड. दर्शनव्यापारकम् 'अयं गवयशन्दवाच्यः इति सम्ज्ञासज्ज्ञिसम्बन्धप्रतिपत्तिरूपमुपमानम्-इति नैयायिकमनमप्यपहस्तितं भवति ।
अर्थ-भाट्ट मत के इस निराकरण से नैयायिक मत का भी निराकरण होता है। "गाय के समान गवय है" यह सादृश्य का प्रतिपादक वाक्य अतिदेशवाक्य है। अतिदेशवाक्य के अर्थ का ज्ञान करण है। सादृश्य से विशिष्ट गवय का दर्शन व्यापार है । यह गवय शब्द से वाच्य है इस रीति से संज्ञा और संज्ञी के संबंध का ज्ञान उपमान अर्थात् उपमिति है-यह नैयायिकों का मत है ।
विवेचना-अरण्यवासी पुरुष प्रामवासी को कहता है "गाय के समान गवय होता है" । जब ग्रामवासी गवय को देखता है तब वह गवय पक्षको वाचक और गवयरूप अर्थ को वाच्य मानता है। गवय संज्ञा है और 'गषयरूप अर्थ संज्ञी है, गवय पद से गवयरूप अर्थ को समझना चाहिए' इस प्रकार की वक्ता की इच्छा संबंध है इस संबंध का ज्ञान उपमिति रूप फल है। इस फल का ज्ञान इन्द्रिय अथवा हेतु अथवा शम से नहीं हो सकता, अतः उपमान भिन्न प्रमाण