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हो सकता । इस तत्त्व को आप भी स्वीकार करते हो। प्रत्यक्ष अथवा स्मरण से यदि सादृश्य विशिष्ट गाय का अथवा गाय के स्मरण से विशिष्ट गवय के सादृश्य का ज्ञान हो सके
तो उपमान प्रमाण प्रत्यक्ष और स्मरण से अतिरिक्त नहीं सिद्ध होगा।
ध्यान रखना चाहिए-इस प्रकार के विशिष्ट ज्ञान में प्रत्यक्ष और स्मरण की जो अशक्ति है वह सादृश्यरूप विषय के कारण नहीं । यदि सादृश्यरूप विषय न हो तो भी इस प्रकार की विशिष्ट वस्तु हो सकती है जिसको प्रकाशित करने में अकेला प्रत्यक्ष और अकेला स्मरण समर्थ नहीं हो सकता। मुख्य विषयों के प्रकाशन में सामर्थ्य और असामर्थ्य के कारण प्रमाणों में भेद होता है। विषयों के अवान्तर भेद को लेकर प्रमाणों का भेद नहीं होता चक्षु रूप को प्रकाशित करती है । रस अथवा गंध भादिको प्रकाशित करने में चक्षु का सामर्थ्य नहीं है, अतः चक्षु. जीभ और नासिका भिन्न इन्द्रिय हैं। नील-पीत. श्वेत और रक्त आदि रूपों के कारण चक्षु में भेद नहीं होता। नील पोत आदि रूप के अवान्तर भेद हैं। चक्ष जिस प्रकार नील को प्रकाशित करती है। इस प्रकार पोत आदिको प्रकाशित करती है । अतः चक्ष समस्त रूपों के प्रकाशन का साधन कही जाती है। अतीत देश-काल के ज्ञान में प्रत्यक्ष की शक्ति नहीं, उसमें स्मरण की शक्ति है। वर्तमान देश-काल के ज्ञान में प्रत्यक्ष की शक्ति है उसमें स्मरण की शक्ति नहीं । जब अतीत और वर्तमान देश काल से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान होता है, तब केवल प्रत्यक्ष अथवा केवल स्मरण से विशिष्ट वस्तु प्रतीत नहीं हो सकती। एकता अथवा सादृश्य विशिष्ट वस्तु के अवान्तर भेद हैं ।