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ग्रन्थकार कहता है-इतना जो कहा है वह विशा का प्रकाशन है । इस दिशा में यदि आगे जाओगे तो अधिक ज्ञान होगा। यह कथन सक्षेप से है ।
मूलम्-अत्राह भाः नन्वेकत्वज्ञानं प्रत्यभिज्ञानमस्तु, सादृश्यज्ञानं तूपमानमेव, गवयं. दृष्टे गवि च स्मते सति सादृश्यज्ञानस्योपमा. नत्वात्। ___अर्थ-इस विषय में कुमारिल भट्ट का अनुगामी कहता है, एकत्व का प्रकाशक ज्ञान चाहे प्रत्यभिज्ञान हो, सादृश्य का प्रकाशक ज्ञान तो उपमान ही है । गवय (वन्य पशु) को देखने के अनन्तर और गाय का स्मरण करने के अनन्तर सादृश्य का ज्ञान उपमान होता है।
विवेचना-विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध होनेसे "वही यह फल है' इत्यादि प्रत्यभिज्ञान प्रत्यक्षरूप है, इस आक्षेप के परिहार के लिए सिद्धान्तीने इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान उपस्थित किया जिसमें विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध नहीं हो सकता । “वह इसके समान है" यह सादृश्य का प्रकाशक प्रत्यभिज्ञान इस प्रकार का है जिसमें विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध असंभव है । यह सुनकर कुमारिल भट्ट का अनुगामी कहता है, सादृश्य के प्रकाशक ज्ञान को आप प्रत्यभिज्ञान कहते हैं परन्तु यह युक्त नहीं । सादृश्य का बोधक ज्ञान उपमान होता है। गाय के दर्शन से