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विवेचना:-वही यह फल है-इस प्रत्यभिज्ञान में 'वह' इतना विशेषण अंश है और 'फल' विशेष्य है। विशेष्य फल के साथ चक्षु का सन्निकर्ष होता है और पूर्व देश काल के संबंधरूप विशेषण का स्मरण होता है । इसके अनन्तर वही यह फल है इस आकारवाला प्रत्यभिज्ञान होता है । विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध और उसके द्वारा उत्पत्ति हुई है, इसलिए यह ज्ञान विशेषण सहित विशेष्य का प्रत्यक्ष है, इस प्रकार प्रत्यभिज्ञान को जो लोग विशिष्ट प्रत्यक्षरूप कहते हैं. उनका कथन भी पहले कहे हेतुओं से अयुक्त सिद्ध होता है। स्मरण इन्द्रिय का सहकारी नहीं हो सकता, अतः अतीत देश काल के स्मरण से विशिष्ट वस्तु प्रत्यक्ष नहीं हो सकती। इसलिए केवल विशेष्य का ज्ञान प्रत्यक्ष हो सकता है। यह दंडी पुरुष है, इत्यादि विशिष्ट प्रत्यक्ष जब होता है तब विशेषण दण्ड और विशेष्य पुरुष के साथ इन्द्रिय का संबंध होता है । अतः वहाँ विशिष्ट का प्रत्यक्ष हो सकता है। प्रत्यभिज्ञान में विशेषण के साथ इन्द्रिय का सबंध नहीं है, अतः विशिष्ट का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता । स्मरण और अनुभव इन दोनों से उत्पन्न प्रत्यभिज्ञान अतिरिक्त ज्ञान है। यह केवल प्रत्यक्ष नहीं, केवल स्मरण नहीं और प्रत्यक्ष और स्मरण का समुदाय रूप नहीं ।
इसके अतिरिक्त इस प्रकार का भी प्रत्यभिज्ञान होता है जिसमें विशेष्य के साथ इन्द्रिय का संबंध नहीं हो सकता । 'इस के समान वह था' इस प्रकार का ज्ञान होता है। इस ज्ञान में इसके समान' इतना विशेषण अंश है, और 'वह' विशेष्य अंश है। पूर्व देश और काल में जिसका