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अर्थ : - इसके अतिरिक्त ' में पहचानता हूँ' इस विलक्षण प्रतीति से भी प्रत्यभिज्ञान भिन्न सिद्ध होता है ।
विवेचना:- मैं प्रत्यक्ष करता हूँ, यह प्रत्यक्ष को प्रतोति है। मैं अनुमान करता हूँ, यह अनुमान की प्रतीति है । प्रतीति के भेद से अनुमान प्रत्यक्ष से भिन्न सिद्ध होता है इसी रीति से मैं पहचानता हूँ इस प्रतीति के द्वारा प्रत्यमिज्ञान, प्रत्यक्ष और अनुमान से भिन्न सिद्ध होता है । प्रत्यक्ष करता हूं, और पहचानता हूं. इन दो प्रतीतियों का भेद अनुभवसिद्ध है ।
मूलम्:- एतेन, 'विशेष्येन्द्रियसन्निकर्षसत्वाद्विशेषणज्ञाने सति विशिष्टप्रत्यक्षरूपमेतदुपपद्यते' इति निरस्नम् एतत्सदृशः सः' इत्यादौ तदभावात् स्मृत्यनुभव सङ्कलन क्रमस्यानुभविकत्वाच्चेति दिक ।
अर्थः- विशेष्य के साथ इन्द्रिय का सन्निकर्ष होने से विशेषण का स्मरण होने पर अनन्तर विशिष्ट प्रत्यक्ष रूप यह प्रत्यभिज्ञान उत्पन्न होता है इस प्रकार के मत का निराकरण भी पहले कहे हेतुओं से हो जाता है । फिर 'वह इसके समान है' इत्यादि ज्ञान में उसका विशेष्य के साथ इन्द्रिय के सन्नि कर्प का अभाव है और स्मृति और अनुभव की संकलना का क्रम अनुभवसिद्ध है । प्रत्यभिज्ञान भिन्न प्रमाण है, इस विषय में यह दिशा का प्रकाशन है ।