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वर्तमानकाल के संबंध को प्रकाशित करता है। वर्तमानकाल में अर्थ के साथ प्राचीनकाल के संबंध को प्रकाशित करने का सामर्थ्य इन दोनों में से किसी भी एक अनुभव में नहीं है. इस कार्य में स्मरण समर्थ है यह स्मरण का स्वतन्त्र कार्य है।
अनुमिति भी व्याप्ति की स्मृति की अपेक्षा रखती है। धूम और अग्नि की व्याप्ति का स्मरण यदि न हो तो पर्वत में अग्नि की अनुमिति नहीं हो सकती । इस रीति से अनुमिति का प्रामाण्य स्मृति के ऊपर आश्रित है। यदि स्मृति अप्रमाण हो तो अनुमिति प्रमाण नहीं हो सकती । अनुमिति से भिन्न स्थलों में स्मृति प्रामाण्य के लिए जिस प्रकार अनुभव की अपेक्षा रखती है. इस प्रकार अनुमिति भी अनुमिति के स्थल में व्याप्ति की स्मति के प्रामाण्य की अपेक्षा रखती है। इस प्रकार स्मृति उत्पत्ति में यदि अनुभव की अपेक्षा रखती है, तो अनुमिति रूप अनुभव भी उत्पत्ति के लिए स्मृति की अपेक्षा करता है । अतः अनुभव के समान स्मृति भी प्रमाण है।
[प्रत्यभिज्ञान का निरूपण] मूलम:-अनुभवस्मृतिहेतुकं तिर्यगवंतासामान्यादिगोचरं सङ्कलनात्मकं ज्ञानं प्रत्य. भिज्ञानम् । ___ अर्थः-अनुभव और स्मृति जिसको उत्पन्न करती है, तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य आदि जिसका विषय है, और संकलन जिसका स्वरूप है, वह ज्ञान प्रत्यभिज्ञान कहा जाता है।