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विवेचना:-यह वही है. इस रीति से जब ज्ञान होता है तब वस्तु के साथ पूर्वदेश और पूर्वकाल के समान वर्तमानकाल और समीपवर्ती देश के साथ संबंध भी प्रतीत होता है। जब धस्तु का संबंध पूर्वदेश और काल के साथ था तब वस्तु भिन्न थी, जबदतमान काल और समीप देश के साथ संबंध होता है तब वस्तु भिन्न है। इस प्रकार को कोई एक वस्तु नहीं है जिसका पूर्व और पर देश काल के साथ संबध हो सके । प्रतिक्षण वस्तु भिन्न होती है। पूर्वकाल में प्राचीन प्रत्यक्ष था, अब वर्तमान प्रत्यक्ष है। वर्तमान प्रत्यक्ष के साथ स्मरण है। इतना भेव प्राचीन और वर्तमान प्रत्यक्ष में है. स्मरण का विषय अत:त वस्तु है और वर्तमान वस्तु प्रत्यक्ष का विषय है । इस प्रकार की कोई एक वस्तु नहीं है, जो प्रत्यक्ष और स्मरण दोनों का विषय हो सके। एक रूप के साथ वस्तु अवश्य प्रतीत होती है, परन्तु परमार्थ में वह एक नहीं है।
पूर्व और परकाल में नदी के प्रवाह को देखकर यह वही नदी है. इस रीति से प्रतीति होती है। पानी की बू दों का समूह प्रवाह है पूर्वकाल में बूंदों का जो समूह था वह आगे चला गया। उसके स्थान को दूसरा समूह लेता है । प्रवाहों में सर्वथा भेद होने पर भी यह वही प्रवाह है, इस रीति से एकता का ज्ञान होता है । प्रवाहों में समानता है एकता नहीं। एकता का ज्ञान भ्रान्त है। इस रीति से भेद रहित किसी एक वस्तु के न होनेके कारण ज्ञान की एकता का प्रकाशक प्रत्यभिज्ञान वास्तव में एक ज्ञान ही नहीं है दो ज्ञान हैं स्मरण और प्रत्यक्ष । समान वस्तुओं के साथ उनका संबंध है, इसलिए वे दोनों प्रकार के ज्ञान एकरूप में प्रतीत होते हैं। यह बौद्धों का आक्षेप है।