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का संबंध एक वस्तु में हो सकता है । आम्र का फल एक है, उसका अतीतकाल और अतीतदेश वर्तमान काल और देश से भिन्न है । एक ही काल में फल का अतीत और वर्तमान के साथ संबंध असंभव है । काल भेद से इस संबंध में कोई विरोध नहीं है । एक ही फल का अतीत काल में अतीत. काल और देश के साथ संबंध था और वर्तमान काल में वर्तमानकाल और देश के साथ संबंध है। अतीत के साथ संबंध को जो प्रकट करता है वह ज्ञान स्मरण रूप है । जो वतमान के साथ संबंध को प्रकट करता है, वह अनुभव है । एक वस्तु के साथ स्मरण और अनुभव का संबंध है और मिन्नरूप होने पर भी विशिष्ट रूप में दोनों एक प्रतीत होते हैं । दण्ड भिन्न है और पुरुष भिन्न है, परंतु जब पुरुष हाथ में दण्ड धारण करता है तब दण्डी पुरुष के रूप में प्रतीति होती है। अनुभव और स्मरण परस्पर भिन्न हैं और उन दोनों का सबंध एक वस्तु के साथ है। भेद होने पर भी भेद की प्रतीति नहीं होती। इस रीति से प्रभाकर मत के अनुगामी प्रत्यभिज्ञान में अनुभव और स्मरण रूप दो ज्ञाना को सत्ता को प्रकट करते हैं।
सिद्धान्ती कहता है-अनुभव और स्मरण दो जान हैं और उनका स्वरुप भी भिन्न है, परन्तु जब प्रत्यभिज्ञान होता है. तब केवल अनुभव और स्मरण नहीं होते, किन्तु उन दोनों से उत्पन्न प्रत्यभिज्ञान नाम का तृतीय ज्ञान होता है। अकेले स्मरण अथवा अकेले अनुभव में जो सामर्थ्य नहीं है, वह सामर्थ्य इन दोनों से उत्पन्न प्रत्यभिज्ञान में है ।
जैन मत के अनुसार वस्तु द्रव्यरूप से स्थिर है। उसके साथ अतीत और वर्तमान देश काल का संबंध हो सकता है।