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सिद्धान्ती इसके उत्तर में कहता है स्मरण का संबंध पूर्व देश काल के साथ है और वर्तमान देश काल के साथ अनुभव का संबंध है। पूर्व और पर दोनों देश कालों के साथ प्रत्यभिज्ञान का सबध है. प्रत्यभिज्ञान अनुभव और स्मृति का समूह रूप नहीं है, किन्तु अनुभव और स्मृति से भिन्न ज्ञान है। उसका विषय भी एक है जो पूर्व और पर पर्यायों में अनुगत है। पर्यायों का विनाश प्रतिक्षण होता है, परंतु द्रव्य का विनाश क्षण क्षण में नहीं होता। पर्यायों के समान यदि द्रव्य का नाश क्षण में हो जाय तो उत्तरवर्ती क्षण में अन्य पर्याय की उत्पत्ति नहीं होनी चाहिए। पर्यायों में भेद है उनमें समान आकार के कारण एकता की भ्रान्त प्रतीति होती है। परंतु भिन्न पर्यायों में स्थिर रहनेवाले एक द्रव्य का ज्ञान एकता के विषय में भ्रान्त नहीं है। पर्यायों के साथ द्रव्यका भेद और अभेद है। द्रव्य पर्यायों से भिन्न हो नहीं अभिन्न भी प्रतीत होता है । यह अभिन्न एक द्रव्य प्रत्यभिज्ञान का विषय है । पर्यायों की भिन्नता युक्ति से सिद्ध है, इसलिए उनकी एकता का ज्ञान भ्रान्त है। परंतु द्रव्य की अभिन्नता युक्तिसिद्ध है, इसलिए उसकी एकता का ज्ञान भ्रान्त नहीं। बाधित विषय में ज्ञान अप्रमाण होता है। जो विषय अबाधित है उसका ज्ञान अप्रमाण नहीं हो सकता। अतः प्रत्यभिज्ञान अनुभव और स्मृति से भिन्न है और प्रमाणभूत है।
मूलमः -अत एव 'अगहोतासंसर्गकमभवस्मृतिरूपं ज्ञानद्वयमेवैतद्, इति निरस्तम् । इत्थं सति विशिष्टज्ञानमात्रोच्छेदापत्तः ।