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परस्पर विरोधी देशकाल से विशिष्ट एक वस्तु की प्रतीति को अनुभव और स्मरण उत्पन्न नहीं कर सकते। विषय के भेद से ज्ञान भिन्न होते हैं । नील और पीत भिन्न हैं, इसलिए इनके प्रकाशक ज्ञान भिन्न हैं । स्मरण का विषय अतीत देशकाल है और अनुभव का विषय वर्तमान देश-काल है । अतीत और वर्तमान देश काल से विशिष्ट वस्तु केवल अतीत और केवल वर्तमान से भिन्न है । विशिष्ट बुद्धि विशेषण विशेष्य और इन दोनों का संबंध इन तीन वस्तुओं को एक साथ प्रकाशित करती है। तीनों अर्थ परस्पर भिन्न हैं, परंतु विशिष्टरुप से एक हैं । इस रीति से विशिष्ट अर्थ तीन वस्तुओं से भिन्न है। परस्पर विरोधी देशकाल से विशिष्ट एक वस्तु का प्रकाशक प्रत्यभिज्ञान अनुभव और स्मरण से भिन्न है। इस रीति से प्रत्यभिज्ञान को यदि स्मरण और अनुभव से भिन्न स्वीकार न किया जाय तो जितने विशिष्ट ज्ञान हैं उन सब की एकता नष्ट हो जायगी।
दण्ड विशिष्ट पुरुष का ज्ञान भी तब दण्ड ज्ञान और पुरुषज्ञान इन दोनों ज्ञानों के रूप में हो जायगा। इन दोनों से भिन्न उसकी सत्ता नहीं सिद्ध होगी । दण्ड और पुरुष का समूह रूप में जब समूहालंबन ज्ञान होता है, तब उस ज्ञान में दण्ड और पुरुष दोनों प्रकाशित होते हैं । 'दण्डी पुरुष' यह ज्ञान विशिष्ट ज्ञान है। समूहालंबन ज्ञान से उसका भेद स्पष्ट है । अनुभव से सिद्ध विशिष्ट ज्ञान को यदि केवल विशेषण और केवल विशेष्य के ज्ञान से भिन्न माना जाय तो परस्पर विरोधी देश कालों से विशिष्ट अर्थ के प्रकाशक प्रत्यभिज्ञान को भी अनुभव और स्मरण से भिन्न स्वीकार करना चाहिए। अनुभव और स्मरण केवल विशेषण के प्रकाशक हैं, विशिष्ट के प्रकाशक नहीं।