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१५१ मिति, चेत् , तर्हि व्याप्तिज्ञानादिविषयीकृतानर्थान् परिच्छिन्दत्या अनुमितेरपि प्रामाण्यं दूरत एव । ___अर्थः-अनुभव के द्वारा जिन विषयों का प्रकाशन होता है उन्ही विषयों को स्मृति प्रकाशित करती है, इसलिए विषय के प्रकाशन में भी स्मृति स्वतन्त्र नहीं है । यदि आप इस प्रकार कहो तो व्याप्ति ज्ञान आदि जिन विषयों को प्रकाशित करता है, उन्हीको अनुमिति भी प्रकाशित करती है, इस कारण अनुमिति का भी प्रामाण्य दूर हो जायगा।
बिवेचना.- अनुभव जिन जिन विषयों को प्रकाशित करता है उन उन को ही स्मृति प्रकाशित कर सकती है। विषय के जिस अंश का प्रकाशन अनुभव में नहीं उसका प्रकाशन स्मृति नहीं कर सकती। इस कारण स्मरण अपने प्रकाशन में भी पराधीन कहा जाय तो अनुमिति को भी पराधीन मानना पडेगा। व्याप्ति ज्ञान आदि से जिन जिन विषयों का प्रकाशन होता है, उन उन विषयों का ही अनुमिति प्रकाशन करती है। मलम:-नैयत्येनाऽभात एवार्थोऽनुमित्या विषयोक्रियत इति चेत; तर्हि तत्तयाऽभात एवार्थः स्मृन्या विषयीक्रियत इति तुल्यमिति न किञ्चिदेतत् ।