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विवेचना:-अनुभव और स्मरण मिलकर संकलन स्वरूप एक ज्ञान को उत्पन्न करते है । इसके द्वारा प्रत्यभिज्ञान के कारण का निर्देश हुआ है । तिर्यक सामान्य और ऊर्वता सामान्य आदि प्रत्यभिज्ञान का विषय है । अनुभव और स्मरण के जो विषय हैं, उनमें विशेषण-विशेष्यभाव का प्रकाशक सङ्कलन स्वरूपज्ञान प्रत्यभिज्ञान है, अर्थात् प्रत्यभिज्ञान का असाधारण स्वरूप संकलन है। किसी प्रत्यभिज्ञान का विषय तिर्यक् सामान्य होता है और किसी प्रत्यभिज्ञान का विषय ऊर्ध्वता सामान्य होता है । सादृश्य-विलक्षणता-दरता-समोपता-ऊंचाई और नीचाई आदि धर्म भी प्रत्यभिज्ञान के विषय हैं । भिन्न देश काल में रहने वाली वृक्ष आदि व्यक्तियों में समान आकारवाला परिणाम. वृक्षत्व आदि सामान्य है । यह तिर्यक् सामान्य कहा जाता है । कुडल-कंकण आदि पूर्वापर पर्यायों में एक अनुगत सुवर्ण आदि द्रव्य ऊर्ध्वता सामान्य है ।
मूलमः-यथा 'तजातीय एवायं गोपिण्ड 'गो. सदृशो गवयः' 'स एवायं जिनदत्तः' 'स एवा. नेनार्थः कथ्यते' 'गोविलक्षणो महिषः' 'इदं तस्माद् दूरम्' 'इदं तस्मात् समीपम्' 'इद तस्मात् प्रांशु हस्वं वा' इत्यादि ।
अर्थः-जिस प्रकार यह गौ उसी जाती की है, गवय गौ के समान होता है, यह वही जिनदत्त' है, वही अर्थ इसके द्वारा कहा गया है, भैंस गौ से विलक्षण है। यह