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अर्थः-जो ज्ञान केवल अनुभव से उत्पन्न होता है. वह स्मरण है । जिस प्रकार वह तीर्थंकर की प्रतिमा ।
विवेचना:-प्रथम काल में जो ज्ञान होता है. वह अनुभव है। प्रत्यक्ष. तर्क, अनुमिति, और शाब्दबोध-ये अनुः भव के भेद हैं । पूर्वकाल के अनुभवों से उत्तरवर्ती काल में जो ज्ञान होता है, वह स्मरण है । वह बस्तु' इस आकार में स्मरण होता है । जब वह संस्कार जागता है-अपने कार्य की उत्पत्ति के लिए उद्यत होता है तब स्मरण की उत्पत्ति होती है। अनुभव करण है और संस्कार व्यापार है। जिस अर्थ का अनुभव न हुआ हो उस अर्थ को स्मृति नहीं होती । उस अथे को देखा था, उस अर्थ का अनुमान किया था, और उस अर्थ के विषय में सुना था, इस रीति से प्रायः स्मरण होता है । इस प्रकार के स्मरणों में जिन अर्थों को स्मृति हती है, उनकी प्रतीति 'वह' इस आकार में होती है। किसी काल में बह' पद के प्रयोग के बिना भी स्मृति होती है। जिस वस्तु का स्मरण हुआ है उसका सबध अतीत काल के साथ है-इस तत्व को 'वह' पद प्रकाशित करता है । जब वह पद का प्रयोग नहीं होता तब अतीत काल का संबंध ‘स्मरण में अन्य रीति से होता है। हम गत वर्ष पजाब में गये थे। इस प्रकार के स्मरण में वह पद का प्रयोग नहीं है। परंतु गये थे' इत्यादि पदों के प्रयोग से अतीत काल के साथ संबंध स्पष्ट है । इस प्रकार के स्थानो में भी वह पद का प्रयोग हो सकता है।
मलम-न चेदमप्रमाणम्, प्रत्यक्षादिवत
अविसंवादकत्वात्।.
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