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मतमेव नहीं है। पर्याप्ति, वेदनीय, तेजस, दीर्घ आयु नामक कर्म आभ्यंतर कारण हैं । शरीर और इन्द्रिय आदिको उत्पत्ति जिससे होती है. वह पर्याप्ति है और नामकर्म का अवान्तर भेद है। सुख दुःख का उत्पादक कर्म वेदनीय है । खाये हुए अन्न के पाक का कारण ऊष्मा रूप तैजस शरीर है उसका कारण तेजस कर्म है। वह भी नाम-कर्म का अवान्तर भेद है । चिरकाल तक जीवन का कारण दीर्घ आयु नाम का कर्म है । इन कर्मों के उदय से भूखरूप पीडा होती है । भगवान केवली में इन कर्मों का उदय है, इसलिए वह कवलाहार करते हैं।
मलम्:- उक्तं प्रत्यक्षम् ।
अर्थ :- प्रत्यक्ष कहा जा चुका ।
( परोक्ष प्रमाण के लक्षण और उसके पाँच विभाग । ]
मूलम्:- अथ परोक्षमुच्यते अस्पष्ट' परोक्षम् । तच्च स्मरण-प्रत्यभिज्ञान-तर्का - ऽनुमा-नाSSगमभेदतः पश्चप्रकारम् |
अर्थ :- प्रत्यक्ष के अनन्तर अब परोक्ष कहा जाता है । जो ज्ञान अस्पष्ट है, वह परोक्ष है। उसके पाँच भेद हैं । (१) स्मरण (२) प्रत्यभिज्ञान ( ३ ) तर्क (४) अनुमान और (५) आगम ।
महम्: - अनुभवमात्रजन्यं ज्ञानं स्मरणम्, यथा तत् तीर्थंकर बिम्बम् ।