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________________ १४३ मतमेव नहीं है। पर्याप्ति, वेदनीय, तेजस, दीर्घ आयु नामक कर्म आभ्यंतर कारण हैं । शरीर और इन्द्रिय आदिको उत्पत्ति जिससे होती है. वह पर्याप्ति है और नामकर्म का अवान्तर भेद है। सुख दुःख का उत्पादक कर्म वेदनीय है । खाये हुए अन्न के पाक का कारण ऊष्मा रूप तैजस शरीर है उसका कारण तेजस कर्म है। वह भी नाम-कर्म का अवान्तर भेद है । चिरकाल तक जीवन का कारण दीर्घ आयु नाम का कर्म है । इन कर्मों के उदय से भूखरूप पीडा होती है । भगवान केवली में इन कर्मों का उदय है, इसलिए वह कवलाहार करते हैं। मलम्:- उक्तं प्रत्यक्षम् । अर्थ :- प्रत्यक्ष कहा जा चुका । ( परोक्ष प्रमाण के लक्षण और उसके पाँच विभाग । ] मूलम्:- अथ परोक्षमुच्यते अस्पष्ट' परोक्षम् । तच्च स्मरण-प्रत्यभिज्ञान-तर्का - ऽनुमा-नाSSगमभेदतः पश्चप्रकारम् | अर्थ :- प्रत्यक्ष के अनन्तर अब परोक्ष कहा जाता है । जो ज्ञान अस्पष्ट है, वह परोक्ष है। उसके पाँच भेद हैं । (१) स्मरण (२) प्रत्यभिज्ञान ( ३ ) तर्क (४) अनुमान और (५) आगम । महम्: - अनुभवमात्रजन्यं ज्ञानं स्मरणम्, यथा तत् तीर्थंकर बिम्बम् ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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