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विरोधी भेद नहीं हो सकता । सामान्य जन की अपेक्षा बलवान का शरीर अधिक दिन तक रह सकता है, परंतु वर्षों तक कवलाहार के बिना उसकी स्थिति असंभव है। जहाँ कारण निरंतर उपस्थित रहते हैं वहाँ कार्य निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं । जब तक बत्ती और तेल विद्यमान है वहाँ तक दीपक की ज्वाला उत्पन्न होती रहती है। इसी रीति से जब तक कवलाहार होता रहता है। तब तक शरीर के परिणाम निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं । पर्यायों की निरंतर उत्पत्ति कार्य को स्थिति है। बत्ती तेल के बिना जिस प्रकार कुछ काल के अनंतर नष्ट हो जाती है इस प्रकार कवला. हार के बिना कुछ काल के बीतने पर शरीर का विनाश अवश्यंभावी है।
कवलहार के साथ केवलज्ञान का विरोध नहीं है । भाहार पर्याप्ति असातवेदनीय कर्म के उदय से कवलाहार होता है। केवलज्ञान के काल में ये कर्म नष्ट नहीं होते । इसलिए केवली कवलाहार कर सकता है। घाति कर्मों का केवलज्ञान के साथ विरोध है । घाति कर्मों के नष्ट हो जाने पर केवल ज्ञान होता है, इसलिए केवलज्ञान की दशा में घाति कर्मों का कार्य नहीं हो सकता । कवलाहार घाति कर्मों का कार्य नहीं है, अतः केवलज्ञान के साथ कवलाहार रह सकता है।
मूलम:-दग्घरज्जुम्थानीयात्ततो न तदुत्पत्तिरिति चेत् नन्वेवं तादृशादायुषो भवोपग्रहोऽपि न स्यात् ।
अर्थ:-केवली में आहारपर्याप्ति और असातवेद