________________
१३०
अवधिज्ञानी समस्त रूपी द्रव्यों को जान सकता है । परन्तु उन द्रव्यों के समस्त पर्यायों को नहीं जान सकता । कभी एक परमाणु के असंख्येय पर्यायों को और कभी संख्येय पर्यायों को जानता है । जब सबसे न्यून परिमाण में जानता है तब एक परमाणु के रूप, रस, गन्ध, स्पर्श इन चार को जानता है। एक एक परमाणु के अनंत पर्यायों को अवधिज्ञानी नहीं जान सकता । समस्त रूपी द्रव्य मनः पर्यायज्ञान के विषय नहीं है । अवधिज्ञान जिन द्रव्यों को जानता है उनके यदि अनंत भाग हों तो उनमें जो एक अनंत भाग है वह मनःपर्यायज्ञान का विषय है ।
मूलम्---तद् द्विविधम्--ऋजुमति - विपुलमति भेदात् । ऋज्वी सामान्यग्राहिगो मतिः ऋजुमतिः । सामान्य शब्दोऽत्र विपुलमत्यपेक्षयाSल्पविशेषपरः, अन्यथा सामान्यमात्रग्राहित्वे मनः पर्यायदर्शनप्रसङ्गात् ।
अर्थ - - मनःपर्यायज्ञान के दो भेद हैं । (१) ऋजुमति और (२) विपुलमति । सामान्य को ग्रहण करनेवाली मति ऋजुमति है । यहाँ विपुल मति की अपेक्षा से अल्प धर्म को सामान्य कहा गया है । यदि इस अर्थ को न लिया जाय और ऋजुमति को केवल सामान्य का प्रकाशक और विशेष धर्मों का अप्रकाशक माना जाय तो वह मनःपर्याय दर्शन के रूप में हो जायगा ।