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आवरण नष्ट हो जाता है और इस कारण केवलज्ञान सिद्ध होता है।
विवेचना:-मति आदि चार ज्ञान समस्त द्रव्यों और पर्यायों को प्रत्यक्ष नहीं करते, इसलिए केवलज्ञान के लक्षण की अतिव्याप्ति उन में नहीं होती। विषयों का प्रकाशन ज्ञान का स्वभाव है। ज्ञानावरण कर्म उस स्वभाव को रोकता है। जब ज्ञानावरण का संपूर्ण रूप से नाश हो जाता है तब आवरण का सर्वथा अभाव होनेसे समस्त द्रव्यों और पर्यायों का प्रत्यक्ष होता है।
__ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच अस्तिकाय हैं और यही जीव आदि पाँच काल के साथ छे द्रव्य हैं। जिसमें गुण और पर्याय रहते हैं वह द्रव्य हैं । द्रव्य का सहभावो परिणाम गुण और क्रमभावी परिणाम पर्याय कहा जाता है । समस्त द्रव्यों और उनके पर्यायों को प्रत्यक्ष करता है । इसलिए केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष कहा जाता है । अवधि और मनःपर्यव ज्ञान पारमार्थिक प्रत्यक्ष हैं. परन्तु समस्त अर्थों को वे प्रकाशित नहीं करते उसलिए वे विकल प्रत्यक्ष कहे जाते हैं। अवधि और मनःपर्यव ज्ञान का कारण है, आवरण का क्षयोपशम, इसमें अवान्तर न्यूनाधिक भाव होता है. इसलिए अवधिज्ञान के अनुगामी आदि छे भेद हैं और मनःपर्यवज्ञान के ऋजुमति और विपुलमति दो भेद हैं। ज्ञानावरण का अत्यंत क्षय केवलज्ञान का कारण है । वह एक है उस में यूनाधिक भाव नहीं हो सकता, अतः केवलज्ञान भेद रहित है। कारण में भेद न हो तो कार्य में भेद नहीं होता।