________________
अर्थ-(२) जो अवधिज्ञान अपनी उत्पत्ति के स्थान में ही विषय का बोध कराता है वह अनानुगामिक है । जिस प्रकार प्रश्नादेश पुरुष का ज्ञान । कोई कोई नैमित्तिक पुरुष किसी विशेष स्थान में ही पूछे प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ होता है । अन्य स्थान में वह यथार्थ रूप से निश्चय नहीं करा सकता। इसी रीति से यह ज्ञान भी उत्पत्ति के स्थान में ही विषय को प्रकाशित कर सकता है ।
मलम् - उत्पत्तिक्षेत्रात्क्रमेण विषयव्याप्तिमवगाहमानं वधमानम् . अधरोत्तरारणिनिमथनोत्पन्नोपात्त शुष्कोपचोयमानाधोयमानेन्ध-. नराश्य ग्निवत्, यथा अग्निः प्रयत्नादुपजातः सन् पुनरिन्धनलाभाद्विवृद्धिमुपागच्छति एवं परमशभाध्यवसायलाभादिदमपि पूर्वोत्पन्न वर्धन इति ।
अर्थ-(३) जो ज्ञान अपनी उत्पत्ति के क्षेत्र से क्रम के साथ बढता हुआ विषयों को व्याप्त करता है वह वर्धमान अवधिज्ञान है । नीचे और ऊपर अरणिनामक दो काष्ठों को मथने से जो अग्नि उत्पन्न होती है वह सूखे काष्ठ की प्राप्ति से बढती जाती है। जिस प्रकार अग्नि प्रयत्न से उत्पन्न होती हैं और फिर काष्ठ