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च्युतेः, प्रागननुभूनकर शेकत्वग्राहित्वा चस्मृने: अंगृहोतग्राहित्वात् स्मृतिज्ञानावरणकर्मक्षयोप
शमरूपायास्तद्विज्ञानजननशक्तिरूपायाश्च वासनायाः स्वयमज्ञानरूपत्वेऽपि कारणे कार्योपचारेण ज्ञानभेदाभिधानाविरोधादिति ।
अर्थ- आपका कथन युक्त नहीं है । प्रथम क्षण की अविच्युति स्पष्ट वासना को उत्पन्न करती है और द्वितीय क्षण की अविच्युति स्पष्टतर वासना को उत्पन्न करती है । तृतीय क्षण की अविच्युति स्पष्टतम वासना को उत्पन्न करती है इसलिए प्रत्येक क्षण की अविच्युति भिन्न भिन्न अर्थों को प्रकट करती है । अतः अविच्युति अज्ञात अर्थ की प्रकाशक है । पूर्व काल में जिस अर्थ का अनुभव हो चुका है उसका जब फिर से अनुभव होता है तब स्मृति वस्तु की एकता को प्रकाशित करती है । इस एकताका ज्ञान अतीत काल में नहीं हुआ था इसलिए स्मृति भी अज्ञात अर्थ की ज्ञापक है। स्मृति ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम रूप अथवा स्मृति ज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति रूप वासना स्वयं अज्ञानात्मक है, तो भी कारण में कार्य का उपचार करके ज्ञान के भेद रूप में उसको कहा गया है। इस में विरोध नहीं है ।