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का परिणामी कारणं है। अपने स्वसंवेद्य रूप को छोडकर अविच्युति अव्यक्त रूप को धारण करती है । इस अव्यक्त रूप में अविच्युति ज्ञान रूप ही है। यदि वासना सूक्ष्म रूप में ज्ञान न हो तो कालान्तर में स्मृति रूप ज्ञान के आकार को न धारण कर सके । अतः वासना स्पष्ट रूप में प्रतीयमान न होने पर भी ज्ञानात्मक है वह मतिज्ञान का भेद हो सकती है। इसमें कोई विरोध नहीं है ।
[-अवग्रह आदि का क्रम-]
मूलम्-एते चावग्रहादयो नोत्क्रमव्यति. क्रमाभ्यां न्यूनत्वेन चोत्पद्यन्ते, ज्ञेयस्येत्यमेव ज्ञानजननस्वाभाव्यात् । क्वचिदभ्यस्तेऽपायमा. त्रस्य दृढवासने विषये स्मृतिमात्रस्य चोपलक्षणेऽप्युत्पलपत्रशतव्यतिभेद इव सौम्यादधग्रहादिक्रमानुपलक्षणात् । ___अर्थ-ये अवग्रह आदि ज्ञान विपरीत क्रम से अथवा क्रम के भंग से नहीं उत्पन्न होते । पदार्थ ज्ञान का विषय है । उसकास्वभाव इस प्रकार का है, जिस से वह ज्ञान को इसी क्रम से उत्पन्न करता है, । किसी अभ्यस्त विषय में केवल अपाय और जिस विषय में दृढ वासना होती है उस में केवल स्मृति प्रतीत होती है परन्तु वहाँ भी अवग्रह आदि के क्रम से ज्ञान होता है। जिस प्रकार कमल के सौ पत्तों का वेध क्रम से होता