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अनिश्रित अर्थ को जानता है। हेतु के बिना म्वरूप से जब ज्ञान होता है तब अनिश्रित कहा जाता है । (८) कोई हेतु के आश्रय से जानता है । इस प्रकार का ज्ञान निश्रित कहा जाता है । [(8) अन्य व्यक्ति विरोधी धर्मों से रहित वस्तु को जानता है । उसका ज्ञान निश्चित कहा जाता है । (१०) कोई अनिश्चित अर्थात विरोधी धर्मों के साथ जानता है ।] (११) अन्य व्यक्ति ध्रुव रूप से जानता है । बहु आदि रूप से जिस शब्द आदि को जानता है । उसको सर्वदा उसी रूप में जानता है (१२) अन्य व्यक्ति अध्रुव रूप से जानता हैं । कभी बहु रूप से
और कभी अबहु रूप से जानता है। इसी रीति से भिन्न भिन्न कालों में बहुविध और अबहुविध आदि रूप से ज्ञान अध्रुव ज्ञान है। मति के भेद कहे जा चुके।
-[श्रुतज्ञान का निरूपण]-- मूलम् - श्रुतभंदा उच्यन्ते-श्रुतम् अक्षरसज्ञि-सम्यक्-सादि-सपर्यवसित गमिकाऽङ्ग .. प्रविष्टभेदैः सप्रतिपक्ष-चतुर्दशविधम् । ____ अर्थ--श्रुतज्ञान के भेद कहे जाते हैं- अक्षर, संज्ञि, सम्यक् , सादि, सपर्यवसित, गमिक, अङ्गप्रविष्ट