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होने पर भी स्मृति अपाय से भिन्न है । अपाय का स्वरूप स्मृति में आकर अन्य रूप में हो जाता है अपाय के न रहने पर स्मृति वस्तु के स्वरूप का धारण करती है इसलिए धारणा कही जाती है और मतिज्ञान का भेद है।
इसके अतिरिक्त ज्ञात अर्थ का ज्ञापक होनेसे स्मृति को अप्रमाण नहीं कहना चाहिए। वह वस्तू थी' और 'यह वही वस्तु है' इस रीति से दो प्रकार की स्मृतियां हैं । इनमें से 'वह वस्तु थी' इस आकारवाली स्मृति वस्तु को अज्ञात एकता को नहीं प्रकाशित करती। वस्तु के अतीत काल के ज्ञात पर्यायों को ही प्रकाशित करती है, पर सत्य रूप से प्रकाशित करती है । वस्तु का जो स्वरूप है उससे भिन्न स्वरूप को यदि ज्ञान प्रकाशित करे तो वह अप्रमाण होता है पर ज्ञात अर्थ का सत्य रूप में एक दो बार अथवा अनेक बार प्रकाशन अप्रामाण्य का कारण नहीं हो सकता।
__ अपाय और स्मृति का स्वरूप अनुभव से भिन्न रूप में सिद्ध है। अपाय स्मृति रूप में होता है इसलिए स्मृति मति. ज्ञान का भेद है।
___ अपाय आदि के रूप में अपाय आदि की प्रत्यक्ष प्रतीति होती है। अपाय आदि के समान विकल्प का भी विकल्प रूप में प्रत्यक्ष होता है। वासना का प्रत्यक्ष अपाय आदि के समान नहीं होता। स्मृति रूप कार्य के द्वारा उसको अनुमिति होती है अतः वासना विकल्प ज्ञान स्वरूप नहीं है। अपाय जब वस्तु का प्रकाशन करता है तब उसका प्रत्यक्ष संवेदन होता है । कालान्तर में ज्ञान उत्पन्न करने की जो शक्ति अपाय में है उसका संवेदन नहीं होता । जब अपाय स्पष्ट रूप में प्रतीयमान नहीं रहता तब अव्यक्त रूप में