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विवेचना-प्रतिक्षण वस्तु के पर्याय भिन्न होते हैं । भित्र भिन्न क्षणों में उत्पन्न अविच्युति एक वस्तु के भिन्न भिन्न पर्यायों को प्रकाशित करती है, इसलिए अपाय के समान अविच्युति अज्ञात अर्थ को ज्ञापक है । भिन्न प्रकार के कार्यों का उत्पादक होनेसे भिन्न भिन्न क्षणों की अवि. च्युति का स्वभाव भिन्न भिन्न है । स्पष्ट स्पष्टतर आदि भेद से संस्कार भिन्न है अतः संस्कारों की उत्पादक अवि. च्युतियाँ भी भिन्न स्वभाव वाली हैं । भिन्न स्वभाव वाले पदार्थ जिन समान अर्थों को उत्पन्न करते हैं उनमें समानता होने पर भी धर्म का भेद होने से भेद रहता है। अतः द्रव्य रूप से ज्ञात अर्थ को और पर्याय रूप से अज्ञात अथ की प्रकाशक अविच्युति है अतः वह प्रमाण है ।
इसी रोति से जब "यह वही वस्तु है" इस आकार के साथ स्मृति होती है तब प्राचोन और वर्तम नकाल के पर्यायों से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान होता है पूर्व काल के अपाय के द्वारा अतीत पर्यायों से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान हुआ था। वर्तमानकाल के ज्ञान के द्वारा वर्तमान पर्यायों से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान हुआ है । किसी एक अपाय से अतीत और वर्तमान पर्यायों से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान नहीं होता । अतीत और वर्तमान पर्यायों में भेद होने पर भी उन दोनों प्रकार के पर्यायों से विशिष्ट वस्तु द्रव्य रूप से एक ही है, इस प्रकार वस्तु की एकता का जो ज्ञान होता है वह स्मृति का फल है। प्राचीन और अर्वाचीन अपाय से वस्तु की एकता प्रतीत नहीं हुई थी । अज्ञात एकता का ज्ञापक होने के कारण स्मृति प्रमाण है।
'यह वस्तु है' इस रूप में जो अपाय था, वह अब 'वह वस्तु थी' इस आकार में है । इस आकार के कारण ज्ञान रूप