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तभेदानां चेह विचार्यत्वात् । तृतीयपक्षोऽप्य. युक्त एव; सङ्खयेयमसङ्ख्ययं वा कालं वासनाया इष्टत्वात् , एतावन्तं च कालं वस्तुविकल्पायोगादिति न कापि धारणा घटत इति चेत्,
___ अर्थ--शंका अविच्युति और स्मृति ये दोनों ज्ञान गृहीत-ग्राही हैं । पहले जिस अर्थ का ज्ञान हुआ था उसीको ये दोनों ज्ञान फिर से जानते हैं इसलिए प्रमाण नहीं हैं और जो संस्कार है उसका स्वरूप क्या है ? स्मृति ज्ञानावरण का क्षयोपशम रूप है ? अथवा स्मृति शान को उत्पन्न करने की शक्ति रूप है ? अथवा उस वस्तु के विषय में विकल्प ज्ञानरूप है ? ये तीन प्रकार हो सकते हैं । इन तीन में से पहले के दो पक्ष युक्त नहीं हैं। क्षयोपशम और शक्ति दोनों ज्ञान रूप नहीं। यहाँ ज्ञान के भेदों का विचार है । अज्ञानात्मक वस्तु ज्ञान का भेद नहीं हो सकती । तीसरा पक्ष भी युक्त नहीं । संख्येय अथवा असंख्येय काल तक संस्कार की स्थिति है परन्तु वस्तु के विषय में विकल्प रूप ज्ञान इतने काल तक स्थिर नहीं रह सकता । इस रीति से आप जिन धारणाओं को कहते हो उनमें से कोई एक भी युक्ति से सिद्ध नहीं होती।