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"यह वही है" इस आकारवाला परिणाम पूर्व काल के अपाय का स्मृति नामक होता है। स्मृति को उत्पन्न करने वाला संस्कार वासना कहा जाता है । अतः अपाय से ये तीनों भिन्न हैं ।
विवेचना-प्रविच्युति. वासना और स्मृति का कारण अपाय है । कारण और कार्य में भेद और अभेद होता है । कार्यों की जो परम्परा चलती है उसमें किसी कार्य का स्वरूप इस प्रकार का होता है, जिसमें कार्य और कारण के अन्तर की मात्रा अत्यन्त अल्प होती है । किसी काल का स्वरूप अति भिन्न रूप में प्रतीत होता है । न्यून और अधिक भेद के होने पर भी कार्यों में कारण की अनुगत प्रतीति रहती है । प्रथम काल का जो अपाय है उसका परिणाम उत्तरकाल का अपाय है। पूर्व काल के अपायों को अपेक्षा उत्तर काल के अपाय दृढतर और दृढतम होते जाते हैं। बीज से जो अंकुर उत्पन्न होता है वही वर्षों पीछे विशाल वृक्ष के रूप में परिणत होता है । अंकुर और वृक्ष में जिस प्रकार मेब है इस प्रकार अपाय और अविच्युति में भेद है । अंकुर पुष्प फल आदि को नहीं उत्पन्न करता परन्तु वृक्ष उत्पन्न करता है । प्रथम समय का अपाय संस्कार और स्मृति के उत्पन्न करने में समर्थ नहीं हैं परन्तु जब अपाय निरंतर स्थिर रहकर दृढ हो जाता है तब संस्कार और स्मृति को उत्पन्न कर सकता है । अपाय की धारा रूप अविच्युति अपाय के क्षणिक आकार से भिन्न है और धारणा कहो जाती है । जिस काल में अपाय होता है उसी काल की वस्तु का स्वरूप अपाय में प्रकाशित होता है । 'वही यह वस्तु है' इस