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द्वारा अभाव का निश्चय ही अपाय रूप में प्रतीत होता है। जो पदार्थ विद्यमान है उसके धर्म का अवधारण धारणा है। ऊपर की दिशा में लताकी गति और पक्षियों का संबंध आदि वृक्षों के विशेष धर्म हैं । इन धर्मों का अवधारण धारणा है । इस मत के अनुसार "यह पुरुष नहीं है" इस प्रकार का ज्ञान अपाय है। "यह स्थाणु ही है" इस प्रकार का निणय धारणा है।
मूलम्-तन्न; कचित्तदन्यव्यतिरेकपरामशत, क्वचिदन्वयधर्मसमनुगनात् , चिचोभाभ्यामपि भवतोऽपायस्य निश्चय करूपेण भेदाभावात् , अन्यथा स्मराधिक्येन मतेः पञ्चभेदत्वप्रसङ्गात् । ____ अर्थ-किसी स्थान में जो धर्म विद्यमान हैं उनसे भिन्न धर्मों के अभाव का प्रतिपादन करने से और किसी स्थान में जो विद्यमान हैं उनके अनुगम का निरूपण करने से और किसी स्थान में दोनों प्रकार के धर्मों के द्वारा अर्थ का निश्चय होता है । समस्त स्थानों में निश्चय का स्वरूप एक ही है उसमें भेद नहीं । यदि इस प्रकार न माना जाय तो स्मृति की अधिकता के कारण मतिज्ञान के पाँच भेद हो जायेंगे।
विवेचना-यहां पुरुष के धर्म नहीं दिखाई देते इसलिए यह स्थाणु ही है और स्थाणु के धर्म दिखाई देते हैं इसलिए स्थाणु ही है इन दो प्रकारों से उत्प । निश्चय के स्वरूप