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द्विविधान्यञ्जनावग्रहः, अर्थावग्रहश्च । व्यज्यते प्रकटोक्रियतेऽर्थोऽनेनेति व्यञ्जनम्-कदम्बपुष्पगोलकादिरूपाणामन्तनिवृत्तीन्द्रियाणां शब्दादि विषयपरिच्छेदहेतुशक्तिविशेषलक्षणमुपकरणे-- न्द्रियम, शब्दादिपरिणतद्रव्यनिकुरम्बम, तदुभयसम्बन्धश्च । तो व्यञ्जनेन व्यञ्जनस्यावग्रहो व्यजनावग्रह इति मध्यमपदलोपो समासः ।
अर्थ-मति ज्ञान के चार भेद हैं अवग्रह, ईहा, अपाय और धारणा। अवकृष्ट ग्रह अर्थात् हीन ज्ञान अवग्रह है। वह दो प्रकार का है-व्यञ्जनावग्रह और अर्थावग्रह । जिसके द्वारा अर्थ व्यक्त होता है वह व्यञ्जन है । उपकरणेन्द्रिय, शब्द आदि के रूपमें परिणत द्रव्यका समूह, और इन दो का संबंध व्यञ्जन कहा जाता है । अन्दर में निवृत्तीन्द्रिय है वे कदम्ब पुष्प के गोलक आदि के समान हैं । निवृत्तीन्द्रियों में शब्द आदि विषयों को प्रकाशित करने की जो शक्ति है उसका नाम उपकरणेन्द्रिय है । इस लिये यहाँ व्यञ्जन के द्वारा व्यजन का अवग्रह इस रीति से मध्यम पद. लोपी समास है।
विबेचना-मध्यम पद लोपी समास से व्यञ्जनावग्रह शब्द इन्द्रिय और शब्द आदि के संबंधको और उस संबंध के