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सत्य है पर उनके द्वारा इन्द्रिय और अर्थ का संबंध नहीं सिद्ध होता बाह्य इन्द्रियों के साथ अर्थ का संबंध न होने पर भी संबंध की कल्पना सुख-दुख को उत्पन्न करती है । यह कल्पना मन का कार्य है । स्वप्न में जिनेन्द्र के स्नात्र का दर्शन और वांछित अर्थ की अप्राप्ति केवल मन की कल्पना है । ब. ल्पना से उत्पन्न सुख-दुःख के कारण बाह्य विषयों के साथ मन के संबंध का अनुमान उचित नहीं है ।
मूलम् - क्रियाफलमपि स्वप्ने व्यन्जन विसर्गलक्षणं दृश्यत एवेति चेत्,
अर्थ - यदि कहो स्वप्न में वीर्यपात रूप किया फल भी देखा जाता है ।
विवेचना - यहाँ शंका करता है - भोजन आदि क्रियाओं का फल तृप्ति आदि यद्यपि स्वप्न ज्ञान से नहीं दिखाई देता, तो भी कुछ एक क्रियाओं का फल स्वप्न ज्ञान से भी उत्पन्न होता है । स्त्री का संभोग वीर्यपात का कारण है यह वीर्यपात स्वप्न में भी होता है। इसके कारण स्त्री के साथ मन का संबंध सिद्ध होता है और उसके कारण मन प्राप्यकारी सिद्ध होता है।
मूलम् - तत् तीव्राध्यवसयिकृतम्, न तु कामिनीनिधुवनक्रियाकृतमिति को दोषः : ?
अर्थ - तीव्र अध्यवसाय के कारण वह वीर्यपात होता है । वह वीर्यपात कामिनी के साथ संभोग क्रिया से उत्पन्न नहीं होता ।