________________
आनन्द और विषाद की प्रतीति जागने के अनन्तर भी होती है।
विबेचना-यहां शंका करते हैं, आप कहते हो स्वप्न में जिन वस्तुओं का अनुभव होता है उनसे उत्पन्न सुख-दुःख का ज्ञान जागने के पीछे नहीं होता। परन्तु सदा इस प्रकार नहीं होता। जो मनुष्य स्वप्न में भगवान जिनेन्द्र के अभिषेक को देखता है उसका अनुभव जागने के पीछे भी होता है। जिसको स्वप्न में प्रयत्न करने पर भी वांछित अर्थ की प्राप्ति नहीं होती उसको स्वप्न में दुःख होता है और उस दुःख का अनुभव जागने के पीछे भी होता है। इस प्रकार के स्वप्नों में बाह्य विषयों के साथ मन के संबंध को अवश्य मानना पडेगा। इस प्रकार के स्थलों में जागने के काल का ज्ञान स्वप्न ज्ञान को बाधित नहीं करता।
मूलम्-दृश्येतां स्वप्न विज्ञानकृतौ तौ, स्वप्न. विज्ञानकृतं क्रियाफलं तु तृप्त्यादिकं नास्ति, यतो विषयप्राप्तिरूपाप्राप्यकारिता मनसोयुज्येतेति ब्रूमः। __ अर्थ-स्वप्न के ज्ञान से उत्पन्न सुखदुःख चाहे देखने में आवें परन्तु क्रिया का फल तृप्ति आदि नहीं है जिसके कारण विषय के साथ संबंध रूप मन की प्राप्यकारिता सिद्ध हो सके।
विवेचना-सुख दुःख दो प्रकार के होते हैं । इन्द्रिय और अर्थ के संबंध से जो सुख दुःख उत्पन्न होते हैं वे एक प्रकार के