________________
अर्थ-समाधान करते हुए कहते हैं, 'मेरु पर मेरा शरीर गया था' यह अनुभव स्वप्न में होता है । जिस प्रकार शरीर के गमन का स्वप्न असत्य है इस प्रकार मेरु पर मन के गमन का स्वप्न भी असत्य है । मेरु पर शरीर के गमन का स्वप्न यदि असत्य न हो तो पुष्पों की सुगन्ध के कारण सुख की और मार्ग में चलने के कारण थकावट की प्रतीति होनी चाहिये ।
विवेचना-मन के समान शरीर भी स्वप्न में मेरु के उपर गया हुआ प्रतीत होता है। मेरु पर जो वृक्ष हैं उन वृक्षों के फूलों की सुगन्ध आ रही है इस प्रकार की प्रतीति किसी को स्वप्न में होती है। यह प्रतीति सत्य नहीं है । जो मनुष्य स्वप्न को देखता है उसके समीपवर्ती लोग उसके शरीर को समीप में ही देखते हैं। स्वप्न द्रष्टा का शरीर यदि मेरु के उपर गया होता तो समीप के लोगों को उसका शरीर दृष्टि गोचर नहीं होना चाहिये । मेरु के पुष्पों के साथ संबंध यदि सत्य होता तो जागने के पीछे सुगन्ध के अनुभव से उत्पन्न सुख का और लम्बे मार्ग में चलने से उत्पन्न दुःख का अनुभव होता। परन्तु इस प्रकार के सुख-दुःख का अनुभव नहीं होता। इसलिये मेरु के उपर शरीर का गमन असत्य है। असत्य अनुभव वस्तु की यथार्थ स्थिति को नहीं प्रकट करता । स्वप्न में ही नहीं जागरण में भी असत्य ज्ञान उत्पन्न होता है। जागता हुआ मनुष्य शुक्ति को देखता है पर प्रतीति रजत की होती है । इस प्रतीति के कारण वास्तव में रजत को सता नहीं हो जाती। शुक्ति में रजत की प्रतीति के समान