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से मन शब्द अर्थ से अनुगत है । अर्थ के भाषण बिना भाषा के समान अर्थ के मनन बिना मन की प्रवृत्ति नहीं होती।
विवेचना-व्यंजनावग्रह अर्थ का ज्ञानरूप नहीं है वह अर्थ ज्ञान का कारण है। परन्तु मन अर्थ का ज्ञानरूप है। मन पद को व्युत्पत्ति मन को अर्थज्ञानरूप कहती है । वाच्य अर्थों का प्रतिपादन करती हुई भाषा जिस प्रकार भाषा नाम से कही जाती है इस प्रकार मन अर्थों का मनन करता हुआ ही मन कहा जाता है । अवधि, मनः पर्यव और केवल. जान जब उत्पन्न होते हैं, तब अपने विषयों को प्रकाशित करते हुए ही उत्पन्न होते हैं । विषयों के प्रकाशन के बिना अवधि आदि ज्ञान की सत्ता नहीं है, अर्थ के मनन के बिना इसी प्रकार मन की प्रवृत्ति नहीं है । अतः मन का व्यंजनावग्रह नहीं होता।
इस रीति से सिद्ध हुआ नेत्र और मन का व्यंजनावग्रह नहीं होता।
[ अर्थावग्रह का निरूपण ] मलम्-स्वरूपनामजातिक्रियागुणद्रव्यकल्पना. रहितं सामान्यग्रहणम् अर्थावग्रहः ।
अर्थ-स्वरूप, नाम, जाति, क्रिया, गुण और द्रव्य की कल्पना से रहित सामान्य ज्ञान अर्थावग्रह है।
विवेचना-रूप रस आदिका जो नियत स्वभाव चक्षु आदि इन्द्रियों से प्रतीत होता है वह स्वरूप' है । इन अर्थों का वाचक शब्द 'नाम' है । रूपत्व रसत्व आदि 'जातियां'