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हैं । यह रूप मनोहर है और यह रस बलदायक है इत्यादि प्रकार का व्यवहार 'क्रिया' है। शुक्ल नील आदि 'गुण' हैं । पृथ्वी आदि ' द्रव्य' हैं । इन स्वरूप, नाम, जाति आदि का मन में जो शब्द से जन्य ज्ञान प्रकट होता है उसका नाम 'कल्पना' है | अर्थ का इस कल्पना से रहित ज्ञान सामान्य ज्ञान है और वह अर्थावग्रह है । ग्राह्य अर्थ सामान्य विशेषात्मक हैं परन्तु अर्थावग्रह में विशेषों का ज्ञान नहीं होता ।
मूलम् - कथं तर्हि 'तेन शब्द इत्यवगृहोत ः ' इति सूत्रार्थः, तत्र शब्दाद्य ल्लेख राहित्या भावादिति चेत्,
अर्थ - शंका- यदि अर्थावग्रह में शब्द के संबंध से रहित प्रतीति होती है तो " उसने शब्द है इस रीति से अवग्रह किया" इस प्रकार सूत्र में जो कहा है उसकी संगति किस प्रकार होगी ? यह प्रतीति शब्द के उल्लेख से रहित नहीं है ।
विवेचना - "नन्दी सूत्र” में कहा है-"से जहा नामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सद्दं सुणेज्जति तेणं सद्देति उग्गहिए न उण जाणइ के वेस सद्दाइति" इस नन्दी सूत्र के अनुसार जब कोई पुरुष शब्द को सुनता है तब " शब्द है" इस रीति से अर्थावग्रह होता है । इस प्रतीति में शब्द का संबंध है । आपके अनुसार शब्द के संबंध से रहित केवल सामान्य ज्ञान अर्थावग्रह है। इस रीति से नन्दी सूत्र के साथ विरोध होगा ।
मलम् न, 'शब्द:' इति वक्त्रैव भणनात्, रूपरसादिविशेषव्यावृत्त्यनवधारण-परत्वादा ।