________________
५६
आदि बाह्य इन्द्रिया के समान प्राप्यकारी है इस प्रकार की शंका होती है । इस शंका की निवृत्ति के लिये कहते हैं चिन्ता से उत्पन्न सुख दुःख का निषेध नहीं, परन्तु वे सुख दुःख मन को नहीं होते जीव को होते हैं । इस सुख दुःख के अनुभव में मन निमित्त है। संबंध के बिना मन प्रिय और अप्रिय विषयों की चिन्ता कर सकता है। जो संबधी विद्यमान है उनका संबंध होता है । जल और अग्नि दोनों विद्यमान हैं इसलिये उनका संयोग हो सकता है। इन दो में से यदि कोई एक न हो तो सयोग नहीं हो सकता। जो वस्तु विद्यमान नहीं, नष्ट हो चुकी है अथवा जिसकी उत्पत्ति अभी हुई नहीं, कुछ काल के पीछे होगी इस प्रकार के अतीत और अनागत विषयों की चिन्ता मन के द्वारा होती है, अतीत और अनागत विषयों के साथ मनका संबंध नहीं हो सकता । मन विद्यमान है पर अतीत और अनागत विषय अविद्यमान हैं इसलिये अतीत अनागत विषय और मनका संबंध असंभव है । पदार्थों की अपनी अपनी शक्तियाँ विचित्र होती हैं त्वचा आदि इन्द्रिय बाह्य विषयों के साथ संबंध करके ज्ञान उत्पन्न करती हैं । परन्तु मन अतीत अनागत की चिन्ता उनके साथ बिना संबंध के करता है । चिन्ता से जो सुख दुःख उत्पन्न होते हैं। उनका संबंध मनके साथ नहीं होता किन्तु जीव के साथ होता है । सुख-दुःख को उत्पत्ति में इन्द्रिय और विषय निमित्त हैं । परन्तु सुख - दुःख का आधार जीव ही है । सुख और दुःख के द्वारा प्रिय और अप्रिय विषयों के साथ मन के संबंध का अनुमान युक्त नहीं है । किसी कारण से जब वक्षःस्थल में बायु की रुकावट होती है तब पीडा होती है। जब औषध से रुकावट दूर हो जाती है और वायु का संचार होता है तब शान्ति की प्रतीति होती है । ये पीडा और शान्ति जिस