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मलम्-मृतनष्टोदिवस्तुचिन्तने, इष्टसङ्गामधिभवलाभादिचिन्तने च जायमानौ दौर्बल्योरक्षितादि-वदनविकासरोमाञ्चोद्गमादिलिङ्गकावुपघातानुग्रहो न मनसः, किन्तु मनस्त्वपरिणतानिष्टेष्टपुद्गलनिचयरूपद्रव्यमनोऽवष्टम्भेन हृ निरुहवायुभेषजाम्यामिव जोवस्यैवेति न ताभ्य मनसः प्राप्यकारित्वसिडिः।
अर्थ-मृत और नष्ट वस्तु की चिन्ता से दुर्बलता और उरःक्षत हो जाता है । प्रिय वस्तु के संग और ऐश्वर्य के लाभ आदिकी चिन्ता से मुख में विकास और रोमांच उत्पन्न होता है। इन लिंगो से उपघात और अनुग्रह का अनुमान होता है। पर यह उपघात और अनुग्रह मन को नहीं होता, किन्तु शुभ अशुभ पुद्गलों का द्रव्य मन के रूप में जो परिणाम होता है उसकी सहायता से जीव का उपघात और अनुग्रह होता है हृदय में वायु के रूक जाने पर जीव को उपघात और औषध से अनुग्रह होता है। इसी रीति से प्रिय और अप्रिय वस्तुओं की चिन्ता के कारण अनुग्रह और उपघात जीव का होता है।
विवेचना-प्रिय और अप्रिय विषयों की चिन्ता से सुख और दुःख का अनुभव होता है इस कारण बाह्य विषयों के साथ मन के संबंध का अनुमान होता है, और उसके द्वारा मन त्वचा