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चन्द्रादी चावलोकिते उपघाताभावादनुग्रहाभिमानस्योपपत्तेः। - अर्थ-पहली बार सूर्य और चन्द्र को देखने से पीडा
और शान्ति नहीं प्रतीत होती । पीछे निरन्तर देखने से सूर्य की किरणों के साथ आंख का संबंध होता है और आंख को पीडा होती है । चन्द्रमा आदि स्वभाव से सौम्य पदार्थों को देखकर पीडा नहीं होती इसलिये शान्ति का भ्रम होता है। विवेचना-सूर्य के साथ जो नेत्र को संबंध हो तो सूर्य के प्रथम दर्शन में ही चक्षु को पीडा होनी चाहिये । परन्तु नहीं होती। निरंतर सूर्य को देखने से नेत्र में पीडा होती है। उसका कारण है सूर्य की किरणों के साथ नेत्र का सबंध । जहाँ सूर्य है, वहाँ जाकर चक्षु का संबंध नहीं होता। किन्तु जहां चक्षु है वहां सूर्य की किरणें पहुंचती हैं और संबंध होता है इस कारण चक्षु को ताप होता है । चन्द्र को देखने से शान्ति की जो प्रतीति होती है उसका कारण भी चन्द्र के साथ चक्ष का संबंध नहीं है। चन्द्र को देखने से कोई पीडा नहीं होती केवल इस कारण नेत्र में शान्ति का भ्रम होता है।
चन्द्र को देखने से नेत्र में शान्ति की जो प्रतीति होती है वह यदि सत्य हो, तो भी चन्द्र के देश में नेत्र की प्राप्ति का अनुमान नहीं हो सकता। चन्द्र की किरणों ही नेत्र के देश में जाती हैं और नेत्र को शान्त करती हैं। सूर्य की किरणों के समान चन्द्र की किरणों भी नेत्र के पास जाती हैं ।